पिछले कुछ दिनों से Indian Rupee डॉलर के खिलाफ अपनी ताकत दिखा रहा है। एक महीने पहले तक rupee डॉलर के मुकाबले 87.94 के स्तर तक गिर गया था, लेकिन अब उसमें 1.50% से ज़्यादा की बढ़ोतरी देखी जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले दिनों में रुपया और मज़बूत हो सकता है। आइए, समझते हैं कि कैसे रुपया डॉलर के मुकाबले “इंटरनेशनल प्लेयर” बनकर उभर रहा है।
तीन दिन लगातार चढ़ाई, डॉलर की हवा निकाली
Indian rupee तीसरे दिन भी डॉलर के मुकाबले मज़बूत हुआ है। इस बीच, डॉलर इंडेक्स (जो डॉलर की ताकत को मापता है) पिछले 5 महीने के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। यानी, दुनिया की सबसे ताकतवर करेंसी “डॉलर” का घमंड टूट रहा है, और Indian rupee अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में अपनी धाक जमा रहा है।
- तीन दिन में 67 पैसे की छलांग: बीते तीन ट्रेडिंग सेशन में रुपया डॉलर के मुकाबले 0.77% (कुल 67 पैसे) चढ़ा।
- मंगलवार को 26 पैसे की बढ़त: सिर्फ मंगलवार को ही रुपया 26 पैसे मज़बूत हुआ और डॉलर के मुकाबले 86.55 पर बंद हुआ।
क्यों मज़बूत हो रहा है Indian rupee?
विशेषज्ञों के मुताबिक, रुपये की इस तेज़ी के पीछे दो मुख्य वजहें हैं:
- भारत के आर्थिक आंकड़े: देश की मैन्युफैक्चरिंग, GDP, और निर्यात जैसे सेक्टरों में सुधार ने निवेशकों का भरोसा बढ़ाया है।
- डॉलर की कमज़ोरी: अमेरिका से आए कमजोर आर्थिक डेटा (जैसे रोज़गार और उत्पादन में गिरावट) के चलते डॉलर इंडेक्स नीचे आया है।
इसके अलावा, एशियाई करेंसियों (जैसे चीन का युआन और जापानी येन) में मज़बूती ने भी रुपये को सपोर्ट किया। हालांकि, कच्चे तेल (क्रूड ऑयल) की बढ़ती कीमतों ने रुपये की रफ्तार थोड़ी धीमी की है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
मिराए एसेट शेयरखान के रिसर्च एनालिस्ट अनुज चौधरी का कहना है, “रुपया आगे भी मज़बूत रह सकता है क्योंकि ग्लोबल बाज़ारों में सकारात्मक माहौल है और डॉलर कमजोर है। लेकिन, क्रूड ऑयल की कीमतें और विदेशी निवेशकों (FIIs) की बिकवाली रुपये को पूरी तरह चढ़ने नहीं देगी।”
उन्होंने यह भी बताया कि अमेरिका के इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन और हाउसिंग सेक्टर के आंकड़े आने वाले दिनों में बाज़ार को प्रभावित कर सकते हैं। साथ ही, अमेरिकी फेडरल रिजर्व (FOMC) की मीटिंग से पहले निवेशक सतर्क रह सकते हैं।
डॉलर इंडेक्स और क्रूड ऑयल का असर
डॉलर इंडेक्स: यह सूचकांक (जो 6 करेंसियों के मुकाबले डॉलर की ताकत बताता है) 0.04% गिरकर 103.32 पर पहुंच गया। यानी, डॉलर की मांग कम हुई।
क्रूड ऑयल: ब्रेंट क्रूड ऑयल का भाव 1.31% बढ़कर 72 डॉलर प्रति बैरल हो गया। भारत जैसे देश के लिए यह चिंता की बात है, क्योंकि तेल महंगा होने से आयात का खर्च बढ़ता है।
शेयर बाज़ार में भी उछाल
Indian rupee की तरक्की का असर शेयर बाज़ार पर भी दिखा। सेंसेक्स 1,131 अंक (1.53%) चढ़कर 75,301.26 पर और निफ्टी 325.55 अंक (1.45%) बढ़कर 22,834.30 पर बंद हुआ। हालांकि, विदेशी निवेशकों (FIIs) ने सोमवार को 4,488.45 करोड़ रुपये के शेयर बेचे, जो बाज़ार के लिए चिंता का विषय है।
क्या है ट्रेड डेफिसिट की स्थिति?
भारत का ट्रेड डेफिसिट (आयात-निर्यात का अंतर) पिछले साढ़े तीन साल के सबसे निचले स्तर पर आ गया है। लेकिन, यहां एक चिंता यह है कि निर्यात में भी काफी गिरावट आई है। साथ ही, आयात (खासकर तेल और सोना) में भारी कमी देखी गई है।
आगे क्या होगा?
विश्लेषकों का मानना है कि रुपया अगले कुछ दिनों में 86.3 से 86.80 के बीच रह सकता है। लेकिन, कुछ जोखिम भी हैं:
- अमेरिका के टैरिफ प्लान: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2 अप्रैल से कुछ सेक्टर्स पर टैरिफ बढ़ाने की योजना बनाई है, जिससे रुपया दबाव में आ सकता है।
- तेल की कीमतें: अगर क्रूड ऑयल की कीमतें और बढ़ीं, तो भारत का आयात बिल बढ़ेगा और रुपया कमजोर हो सकता है।
आम आदमी के लिए क्या मतलब?
रुपया मज़बूत होने के कई फायदे हैं:
- आयात सस्ता होगा: पेट्रोल-डीजल, गैजेट्स, और दवाइयों की कीमतें कम हो सकती हैं।
- विदेश यात्रा सस्ती: डॉलर के मुकाबले रुपया चढ़ा तो विदेश में घूमना या पढ़ाई करना किफायती होगा।
- महंगाई पर लगाम: सस्ता आयात महंगाई घटाने में मदद करेगा।
लेकिन, निर्यातकों को नुकसान भी हो सकता है, क्योंकि विदेशों में भारतीय सामान महंगा हो जाएगा।
निष्कर्ष: रुपये का समय
डॉलर के मुकाबले रुपये की यह तेज़ी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक अच्छा संकेत है। हालांकि, वैश्विक अनिश्चितताएं (जैसे यूक्रेन-रूस युद्ध और अमेरिकी ब्याज दरें) अभी भी चुनौती बनी हुई हैं। अगर देश में मैक्रोइकॉनॉमिक सुधार जारी रहा और डॉलर कमजोर बना रहा, तो रुपया “ग्लोबल करेंसी” के रूप में अपनी पहचान बना सकता है।
याद रखें: करेंसी बाज़ार हमेशा उतार-चढ़ाव से भरा होता है। इसलिए, रुपये की यह चढ़ाई कब तक टिकेगी, यह वैश्विक घटनाओं और घरेलू नीतियों पर निर्भर करेगा।