मुंबई के प्रसिद्ध आजाद मैदान में जब Yashasvi Jaiswal बल्ले से चौके-छक्कों की बरसात करते हैं, तो लाखों दिलों में उम्मीद की चिंगारी जल उठती है। ये वही मैदान है जहाँ यशस्वी ने क्रिकेट के जादूगर बनने का सपना पाला था। लेकिन शाम होते ही यही मैदान उनकी जिंदगी की एक और तस्वीर पेश करता था। यशस्वी चाट-पानीपूरी की दुकान लगाकर अपना और परिवार का पेट भरते थे। आज जो खिलाड़ी उनकी तारीफों के पुल बांधते हैं, कभी वे उन्हीं के दुकान पर गोलगप्पे खाने आया करते थे। यह कहानी है एक लड़के के जुनून की, जिसने गरीबी और संघर्ष को हराकर अपनी मेहनत से इतिहास रच दिया।
बदोही से मुंबई तक: सपनों की शुरुआत
Yashasvi Jaiswal का जन्म उत्तर प्रदेश के छोटे से गाँव बदोही में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। पिता की छोटी-सी पेंट की दुकान से घर चलता था।10 साल की उम्र में ही यशस्वी ने क्रिकेटर बनने का फैसला कर लिया, लेकिन आर्थिक तंगी ने उनके सपनों को मुश्किल में डाल दिया। पिता ने हिम्मत जुटाई और 2013 में यशस्वी को मुंबई भेज दिया, ताकि वह अपने सपने को पंख दे सके। उस वक्त यशस्वी महज 11 साल के थे। मुंबई पहुँचकर उन्हें एहसास हुआ कि यहाँ सपने पूरे करने के लिए संघर्ष से भरी लंबी लड़ाई लड़नी होगी।

तंबू में रहने वाला बच्चा: भूख, चींटियाँ और सपना
मुंबई के आजाद मैदान के पास एक तंबू में रहते हुए यशस्वी ने अपनी कहानी शुरू की। शुरुआती दिनों में उन्हें एक डेयरी में काम करना पड़ा, जहाँ सुबह 5 बजे उठकर दूध बेचना और तबेले की सफाई करना उनकी दिनचर्या थी। बदले में उन्हें रहने की जगह और क्रिकेट प्रैक्टिस का समय मिलता था। लेकिन डेयरी मालिक को यह पसंद नहीं आया कि यशस्वी ज्यादा समय क्रिकेट में बिताते थे। एक दिन उन्हें वहाँ से निकाल दिया गया।

अब Yashasvi Jaiswal के पास आजाद मैदान के बाहर तंबू लगाने के सिवा कोई चारा नहीं था। उस तंबू में न बिजली थी, न पानी। चींटियाँ उन्हें काटतीं, भूखे पेट सोना पड़ता, और कई बार तो बिस्कुट खाकर ही गुजारा करना पड़ता। लेकिन यशस्वी का सपना टूटने वाला नहीं था। वे दिनभर मैदान में प्रैक्टिस करते और शाम को चाट की दुकान चलाते। उन दिनों के बारे में यशस्वी कहते हैं, “रात को चींटियों के काटने से नींद खुल जाती थी, लेकिन सुबह फिर मैदान में पहुँच जाता। मुझे पता था कि मेरा एक ही लक्ष्य है—भारत के लिए खेलना।”
ज्वाला सिंह: संघर्ष में मिला सहारा
यशस्वी की किस्मत तब बदली जब उनकी मुलाकात कोच ज्वाला सिंह से हुई। एक दिन ज्वाला ने देखा कि एक बच्चा पुराने बल्ले से प्रैक्टिस कर रहा है। उन्होंने यशस्वी से पूछा, “तुम्हारा कोच कौन है?” यशस्वी ने जवाब दिया, “मैं बड़े खिलाड़ियों को देखकर सीखता हूँ।” यह सुनकर ज्वाला ने न केवल उन्हें अपने साथ रखा, बल्कि उन्हें क्रिकेट की बारीकियाँ सिखाईं। ज्वाला ने यशस्वी को नए जूते, किट दिलवाई और अपने घर में रहने का मौका दिया। यशस्वी आज भी मानते हैं कि ज्वाला सिंह उनके जीवन के सबसे बड़े मार्गदर्शक हैं।
विजय हजारे ट्रॉफी: इतिहास रचने वाला पल
2019 में यशस्वी ने विजय हजारे ट्रॉफी में दोहरा शतक लगाकर सबका ध्यान खींचा। महज 17 साल की उम्र में उन्होंने 203 रन बनाए और सबसे कम उम्र में यह कारनामा करने वाले बल्लेबाज बने। यह मैच उनकी जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। क्रिकेट जगत ने उन्हें “नया शिखर धवन” कहना शुरू कर दिया। इसके बाद अंडर-19 विश्व कप में उन्होंने भारत की जीत में अहम भूमिका निभाई। टूर्नामेंट के दौरान उन्होंने 400 से ज्यादा रन बनाए और सबकी नजर में चढ़ गए।
IPL का सफर: राजस्थान रॉयल्स से शुरुआत
2020 में राजस्थान रॉयल्स ने यशस्वी को 2.4 करोड़ रुपये में खरीदा। यहाँ उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। एक मैच में उन्होंने 62 गेंदों में 124 रन बनाए, जिसमें 16 चौके और 8 छक्के शामिल थे। यह पारी उनकी जज्बे और हुनर की मिसाल बन गई। अब भी राजस्थान रॉयल्स के लिए खेलते हैं और टीम का मुख्य आधार हैं। उनकी बल्लेबाजी की शैली को देखकर विराट कोहली और MS धोनी जैसे दिग्गज भी उनकी तारीफ कर चुके हैं।

सचिन का आशीर्वाद और परिवार का सपोर्ट
2020 में यशस्वी को सचिन तेंदुलकर ने अपने घर बुलाया और उन्हें एक बल्ला भेंट किया। यशस्वी के लिए यह पल सपने सच होने जैसा था। उनके माता-पिता आज भी बदोही में रहते हैं और उनकी सफलता पर गर्व करते हैं। यशस्वी ने अपनी बहन की शादी का सारा खर्च उठाया और परिवार की जिंदगी बदल दी। वे कहते हैं, “आज पैसे की कोई कमी नहीं, लेकिन मेरा लक्ष्य अभी पूरा नहीं हुआ। मुझे भारत के लिए सभी फॉर्मेट में खेलना है।”
क्या है यशस्वी का मंत्र?
Yashasvi Jaiswal की सफलता का राज है—जुनून, अनुशासन और मेहनत। वे रोज 8-10 घंटे प्रैक्टिस करते हैं और हर मैच को अपना आखिरी मौका समझकर खेलते हैं। उनका कहना है, “मुश्किलें तो आएँगी, लेकिन आपको हार नहीं माननी। जब मैं तंबू में सोता था, तो सोचता था कि एक दिन यही संघर्ष मेरी ताकत बनेगा।”
युवाओं के लिए प्रेरणा
Yashasvi Jaiswal की कहानी साबित करती है कि सपने देखना और उनके लिए लड़ना कभी बेकार नहीं जाता। वे कहते हैं, “अगर मैं कर सकता हूँ, तो कोई भी कर सकता है। बस अपने लक्ष्य पर फोकस रखो और कभी हिम्मत मत हारो।” आज यशस्वी न केवल क्रिकेट के मैदान पर, बल्कि लाखों युवाओं के दिलों में राज कर रहे हैं। उनकी जिंदगी का हर पल यह सिखाता है कि “मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है।”
भविष्य की योजनाएँ और सपने
यशस्वी अब टेस्ट क्रिकेट में भी अपना स्थान बनाना चाहते हैं। वे विराट कोहली और रोहित शर्मा को अपना आदर्श मानते हैं और उनकी तरह कंसिस्टेंट परफॉर्मेंस देने की कोशिश करते हैं। उनका लक्ष्य है—”भारत की तरफ से वर्ल्ड कप जीतना और देश का नाम रोशन करना।”
निष्कर्ष: हार मानने वालों का कोई इतिहास नहीं होता
यशस्वी जायसवाल की जिंदगी की कहानी सिर्फ क्रिकेट नहीं, बल्कि हिम्मत और हौसले की मिसाल है। उन्होंने साबित किया कि “इंसान चाहे तो अपनी मेहनत से किस्मत बदल सकता है।” आज वे नई पीढ़ी के लिए एक आइकन हैं, जो सिखाते हैं कि संघर्ष ही सफलता की सीढ़ी है।