Tamil Nadu language controversy: तमिलनाडु सरकार ने अपने राज्य बजट से भारतीय रुपए के प्रतीक ‘₹’ को हटाकर एक नया कदम उठाया है। इसकी जगह तमिल भाषा के शब्द ‘ரூ’ (रू) को शामिल किया गया है। यह फैसला उस समय आया है, जब राज्य में हिंदी और संस्कृत भाषाओं को लेकर राजनीतिक बहस तेज हो गई है। DMK नीत सरकार का कहना है कि यह कदम तमिल भाषा के गौरव को बढ़ाने के लिए उठाया गया है। हालांकि, विपक्षी दल भाजपा ने इसे “हिंदी विरोधी राजनीति” बताया है।
बजट में क्या बदला?
तमिलनाडु का वित्त मंत्री थंगम तेनरास ने 2024-25 का बजट पेश करते हुए सभी वित्तीय आंकड़ों में ‘₹’ के बजाय ‘ரூ’ लिखा। यह तमिल लिपि में “रुपया” का संक्षिप्त रूप है। उदाहरण के लिए, ₹100 को अब “ரூ100” लिखा गया। सरकार का दावा है कि यह बदलाव तमिल भाषा को प्राथमिकता देने और स्थानीय पहचान को मजबूत करने के लिए किया गया है।
हालांकि, यह फैसला विवादों में घिर गया है। भाजपा ने आरोप लगाया कि DMK सरकार “राज्य में हिंदी विरोधी भावनाओं को भड़का रही है।” BJP प्रवक्ता ने कहा, “रुपए का प्रतीक भारत की एकता का प्रतीक है। इसे हटाना संविधान के मूल्यों के खिलाफ है।”
Tamil Nadu language controversy: भाषा विवाद का लंबा इतिहास
तमिलनाडु में हिंदी और तमिल को लेकर तनाव नया नहीं है। 1965 में हिंदी को एकमात्र राष्ट्रभाषा बनाने के प्रस्ताव के खिलाफ राज्य में बड़े विरोध प्रदर्शन हुए थे। तब से, DMK और अन्य द्रविड़ दल “तमिल गौरव” को अपनी राजनीति का मुख्य आधार बनाते आए हैं।
हाल ही में, केंद्र की नई शिक्षा नीति (NEP) में “तीन-भाषा फॉर्मूला” को लेकर विवाद शुरू हुआ। CM स्टालिन ने कहा था, “केंद्र सरकार हिंदी भासा थोपने की कोशिश कर रही है। हम तमिल भासा को बचाने के लिए लड़ेंगे।” उनके बेटे और मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने भी हिंदी-संस्कृत शिक्षा का विरोध किया है।
रुपए के प्रतीक का तमिलनाडु कनेक्शन
दिलचस्प बात यह है कि भारतीय रुपए का प्रतीक ‘₹’ डिजाइन करने वाले उदय कुमार तमिलनाडु के रहने वाले हैं। उन्होंने 2010 में यह डिजाइन बनाया था, जिसे तत्कालीन केंद्र सरकार ने अपनाया। उदय कुमार के पिता एन. धर्मलिंगम DMK के विधायक रह चुके हैं। इस पृष्ठभूमि में, डीएमके के फैसले पर सवाल उठ रहे हैं: “क्या यह सच में तमिल गौरव की बात है, या फिर राजनीतिक दिखावा?”
विरोध और समर्थन की आवाजें
- भाजपा का हमला: राज्य भाजपा अध्यक्ष अन्नामलाई ने कहा, “स्टालिन सरकार देश की अखंडता को कमजोर कर रही है। रुपया भारत की पहचान है।”
- DMK का जवाब: वित्त मंत्री ने कहा, “हमने कोई नया प्रतीक नहीं बनाया। तमिल में रुपया लिखने का यह पारंपरिक तरीका है।”
- जनता की राय: चेन्नई के एक कॉलेज शिक्षक अरविंद ने कहा, “यह फैसला सांकेतिक है, लेकिन भाषा के नाम पर विवाद बढ़ाना ठीक नहीं।”
विशेषज्ञों का नजरिया
राजनीतिक विश्लेषक शिवा मणि कहते हैं, “2026 के विधानसभा चुनाव से पहले DMK अपने वोट बैंक को मजबूत करना चाहती है। भाषा विवाद उनके लिए सुविधाजनक मुद्दा है।” उधर, अर्थशास्त्री डॉ. रमेश बताते हैं, “बजट में प्रतीक बदलने से आर्थिक नीतियों पर कोई असर नहीं पड़ता, लेकिन यह सांस्कृतिक पहचान का प्रश्न बन गया है।”
क्या है कानूनी पहलू?
भारतीय संविधान अनुच्छेद 343 के तहत ‘₹’ को भारत की आधिकारिक मुद्रा का प्रतीक माना गया है। हालांकि, राज्य सरकारें अपने दस्तावेजों में स्थानीय भाषाओं का उपयोग कर सकती हैं। इसलिए, तमिलनाडु का कदम तकनीकी रूप से गलत नहीं है। फिर भी, यह फैसला राष्ट्रीय एकता बनाम क्षेत्रीय अस्मिता की बहस को हवा दे रहा है।
आगे की राह
इस विवाद ने एक बार फिर भाषाई विविधता और राष्ट्रीय एकता के बीच संतुलन का सवाल खड़ा कर दिया है। जबकि डीएमके का मानना है कि “तमिल को बचाना जरूरी है,” केंद्र सरकार चाहती है कि हिंदी राष्ट्रभाषा के रूप में उभरे। ऐसे में, दोनों पक्षों के बीच सहमति बनाना चुनौतीपूर्ण होगा।
निष्कर्ष Tamil Nadu language controversy: स्टालिन सरकार का यह कदम चाहे जो भी हो, यह साफ है कि तमिलनाडु में भाषा और संस्कृति को लेकर गहरी संवेदनशीलता है। ऐसे में, इस मुद्दे को सिर्फ “हिंदी विरोध” के नजरिए से देखने के बजाय, बहुभाषी समाज की जटिलताओं को समझना जरूरी है।