Jojari Nadi: राजस्थान की धरती पर पानी हमेशा से एक सबसे बड़ा मुद्दा रहा है। जब भी हम राजस्थान का नाम लेते हैं तो दिमाग में सबसे पहले रेगिस्तान की तस्वीर आती है। थार रेगिस्तान, तपती रेत, पानी की किल्लत यही छवि पूरे देश के लोगों के मन में बनी हुई है। राजस्थान के जोधपुर में बहने वाली Jojari Nadi एक बार फिर सुर्खियों में है। यह नदी, जिसे कभी मरुगंगा कही जाने वाली लूनी नदी की सहायक माना जाता था, आज एक गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है। नदी के पानी का रंग काला पड़ गया है, जिससे आस-पास के 50 से अधिक गांवों के सैकड़ों लोग और जानवर गंभीर समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इस संकट से जूझ रहे ग्रामीणों ने अब सरकार के खिलाफ ‘जोजड़ी बचाओ आंदोलन’ शुरू कर दिया है, जिसका नेतृत्व राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) के प्रमुख Hanuman beniwal कर रहे हैं।

जोजड़ी: एक जीवनदायिनी से जहरीले नाले तक का सफर
Jodhpur and Pali जिलों से होकर बहने वाली Jojari Nadi का उद्गम नागौर जिले से होता है और यह पश्चिमी राजस्थान के कई गांवों के लिए जीवन रेखा मानी जाती थी। लेकिन, पिछले कुछ सालों में इस नदी का स्वरूप पूरी तरह बदल गया है। इसका मुख्य कारण है जोधपुर और पाली में स्थित 700 से 800 अवैध और वैध कारखाने। इनमें से ज्यादातर कारखाने टेक्सटाइल (कपड़ा) और स्टील उद्योग से संबंधित हैं। ये कारखाने बिना किसी ट्रीटमेंट के अपना सारा जहरीला अपशिष्ट और रसायन सीधे नदी में बहा देते हैं।
इन अवैध और वैध कारखानों में से करीब 300 कपड़ा फैक्ट्रियां ऐसी हैं, जिनके पास pollution control के लिए कोई उचित लाइसेंस नहीं है। वहीं, 100 से अधिक स्टील फैक्ट्रियां भी अपना तेजाब-युक्त पानी सीधे नदी में छोड़ रही हैं। इस कारण नदी का पानी न केवल काला हो गया है, बल्कि इसमें खतरनाक रसायन भी घुल गए हैं, जिससे यह पीने और उपयोग करने लायक नहीं रह गया है। यह प्रदूषित पानी लगभग 100 से 150 किलोमीटर की लंबाई और 3 किलोमीटर की चौड़ाई में फैला हुआ है, जिससे सीधे तौर पर सैकड़ों गांव प्रभावित हो रहे हैं।

मानव और जीव-जंतुओं पर कहर
जोजड़ी नदी का यह काला पानी लोगों के लिए एक गंभीर संकट बन चुका है। ग्रामीणों का कहना है कि इस जहरीले पानी के कारण लगभग 4,000 जानवरों की जान जा चुकी है, जिनमें मवेशी, Deer and the national bird peacock भी शामिल हैं। जानवर इस polluted पानी को पीकर बीमार पड़ रहे हैं और मर रहे हैं।
मानवीय त्रासदी भी कम नहीं है। गांवों में पीने के पानी के कुएं और तालाब भी इस प्रदूषित पानी से भर गए हैं, जिससे लोगों को दूर-दूर से पीने का पानी मंगाना पड़ता है। लोग त्वचा संबंधी और अन्य गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। दूषित पानी से होने वाली मौतों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है।
इसका असर सामाजिक जीवन पर भी पड़ रहा है। गांव में रिश्तेदार आने से कतराते हैं और शादी-ब्याह के रिश्ते भी नहीं हो पा रहे हैं। इस त्रासदी का सबसे बुरा असर बच्चों की शिक्षा पर पड़ रहा है। प्रदूषित पानी से भरे स्कूल में बदबू और गंदगी इतनी ज्यादा है कि बच्चों ने वहां जाना छोड़ दिया है। एक बच्ची द्वारा बनाए गए वीडियो में दिखाया गया कि स्कूल में तालाब जैसा पानी भरा है। रिपोर्ट के अनुसार, कई स्कूलों में केवल 20-21 बच्चे ही पढ़ने आ रहे हैं, क्योंकि बाकी बच्चे इस हालत में पढ़ने में असमर्थ हैं।
खोखले वादे और चुनावी जुमले
Jojari Nadi का यह संकट नया नहीं है। यह समस्या कई सालों से चली आ रही है, लेकिन हर बार केवल वादे ही किए जाते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री Ashok Gehlot और केंद्रीय जल शक्ति मंत्री Gajendra Singh Shekhawat, दोनों ही जोधपुर से आते हैं। दोनों ही नेताओं ने समय-समय पर इस मुद्दे पर बड़े-बड़े वादे किए।
मार्च 2024 में गजेंद्र सिंह शेखावत ने घोषणा की थी कि इस नदी पर 400 करोड़ रुपये की लागत से एक भव्य रिवरफ्रंट बनाया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा था कि इजराइल की तकनीक लाकर पानी को शुद्ध किया जाएगा। 172 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट की आधारशिला भी रखी गई थी। लेकिन, आज सवा साल बीत जाने के बाद भी इस project पर कोई work शुरू नहीं हुआ है।
वहीं, जब अशोक गहलोत मुख्यमंत्री थे, तब भी इस नदी को साफ करने के लिए कई वादे किए गए, लेकिन वे भी पूरे नहीं हुए। अब विपक्ष में रहते हुए वे इस मुद्दे को उठा रहे हैं। सरकारी अधिकारियों की लापरवाही का आलम यह है कि पर्यावरण मंत्रालय तक यह दावा करता है कि उनके पास प्रदूषण से संबंधित कोई आधिकारिक आंकड़े नहीं हैं। यह दिखाता है कि सरकारें इस मुद्दे पर कितनी उदासीन हैं।
हालात यह हैं कि Pollution Control Board के पास शिकायतें दर्ज होने के बावजूद, प्रदूषण फैला रही फैक्ट्रियों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती है। जांच के नाम पर केवल Notice थमा दिए जाते हैं, जिसका उन पर कोई असर नहीं होता।
राजनीतिक महत्व और नेताओं के वादे
जोधपुर केवल सांस्कृतिक ही नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से भी बेहद अहम जिला है।
- यहीं से पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आते हैं।
- यहीं से केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी सांसद हैं।
- शेखावत जल शक्ति मंत्रालय संभाल चुके हैं।
- 2019 से अब तक नेताओं ने जोजड़ी को बचाने के लिए कई वादे किए।
- 2021 में 45 crore रुपये की sanctioned किये गये।
- कहा गया कि नदी को द्रव्यवती नदी (जयपुर) की तरह रिवर फ्रंट बना दिया जाएगा।
- लेकिन 2025 तक कुछ भी नहीं बदला। न ट्रीटमेंट प्लांट लगा, न प्रदूषण पर रोक लगी। लोग आज भी उसी गंदे पानी में जीने को मजबूर हैं।
गांव वालों की पीड़ा – “काले पानी की सजा”
- ग्रामीणों का दर्द गहरा है। उनका कहना है –
- “हमें कोई सुविधा मत दो, बस इस जहरीले पानी से मुक्त कर दो।”
- “बच्चों का भविष्य अंधकार में है।”
- “जानवरों की मौत रुक नहीं रही।”
- “खेती पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है।”
क्यों है यह समस्या इतनी गंभीर?
इस पूरे मामले की जड़ में प्रशासनिक और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है। यह कोई रॉकेट साइंस नहीं है। प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों की पहचान की जा सकती है और उन पर कड़ी कार्रवाई की जा सकती है। यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि वे अपने अपशिष्ट को बिना ट्रीटमेंट के नदी में न डालें। लेकिन, ऐसा लगता है कि कुछ लोगों की मिलीभगत से यह सब चल रहा है।
लोग कई सालों से इस पीड़ा को झेल रहे हैं। वे शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और सरकारों से अपनी जान बचाने की गुहार लगा रहे हैं। बच्चों को सड़क पर उतरकर प्रदर्शन करना पड़ रहा है, क्योंकि उनकी बात सुनने वाला कोई नहीं है। यह उन सभी वादों पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है, जो सरकारें विकसित राष्ट्र बनने के लिए करती हैं।
हमारे देश में जब भी कोई हिंसक प्रदर्शन होता है, तो उसका कारण अक्सर यही होता है कि लोगों की आवाज अनसुनी कर दी गई है। जोधपुर के ये लोग बड़े ही सहनशील हैं, जो अब तक peacefully तरीके से अपनी demands रख रहे हैं। लेकिन, कब तक? क्या सरकारें तभी जागेंगी जब लोग सड़कों पर आकर आंदोलन करेंगे?
इस गंभीर स्थिति में, यह आवश्यक है कि सरकार तुरंत कार्रवाई करे। प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्रियों पर सख्त से सख्त कार्रवाई हो और Jojari Nadi की सफाई के लिए तुरंत कदम उठाए जाएं। साथ ही, प्रभावित गांवों में पीने के साफ पानी की व्यवस्था की जाए। लोगों के जीवन को राजनीति और भ्रष्टाचार की भेंट नहीं चढ़ाना चाहिए।