Geopolitics In India: New Delhi, अमेरिका और भारत के बीच कूटनीतिक संबंधों में एक नया मोड़ आया है। White House की Press Secretary Carolina Levitt के एक बयान ने India में हलचल मचा दी है। उन्होंने मंगलवार को एक प्रेस ब्रीफिंग में कहा कि अमेरिका ने भारत पर ‘Tariff नहीं, बल्कि प्रतिबंध’ (सैंक्शंस) लगाए हैं। यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारत के Foreign Minister S. Jaishankar रूस की महत्वपूर्ण यात्रा पर हैं।
यह खबर भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में भूचाल ला सकती है। Donald Trump के प्रशासन में व्हाइट हाउस ने रूस से तेल खरीदने के मामले में भारत को निशाना बनाया है। हालांकि, चीन भी रूस से तेल खरीद रहा है, लेकिन उस पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। इस भेदभावपूर्ण नीति ने भारत की संप्रभुता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

Donald Trump का ‘नोबेल शांति’ का सपना और भारत
Donald Trump लंबे समय से खुद को Nobel Peace Prize का हकदार मानते रहे हैं। उन्होंने बार-बार दावा किया है कि उन्होंने दुनिया में कई युद्धों को रुकवाया है। हाल ही में उन्होंने नॉर्वे में नोबेल कमेटी को फोन करके भी यह कहा कि उन्हें पुरस्कार क्यों नहीं दिया जा रहा है। Russia–Ukraine and Israel–Gaza संघर्ष को न रोक पाने की वजह से वे काफी अपमानित महसूस कर रहे हैं। ऐसे में उन्होंने भारत-पाकिस्तान जैसे छोटे-मोटे विवादों का क्रेडिट लेने की कोशिश की है। भारत ने जब रूस से तेल खरीदने के मामले में उनकी बात मानने से इनकार कर दिया, तो शायद यह उनके अहंकार पर एक गहरी चोट थी। इसीलिए, उन्होंने भारत पर प्रतिबंध लगाकर रूस को सबक सिखाने की कोशिश की है। यह उनका एक बचकाना और निराशाजनक कदम है, जो दो बड़े लोकतांत्रिक देशों के बीच संबंधों को खराब कर सकता है।

50% अतिरिक्त शुल्क का झटका
America ने India पर 25% ‘Reciprocal Tariff‘ लगाया है। इसका मतलब यह है कि अगर अमेरिका हमारे सामान पर टैरिफ लगाता है, तो हम भी उनके सामान पर लगा सकते हैं। लेकिन अब White House के बयान के अनुसार, Additional 25% ‘Sanctions’ भी लगाए गए हैं। इसका सीधा मतलब यह है कि अमेरिका को निर्यात होने वाले भारतीय सामान पर कुल 50% का अतिरिक्त टैक्स लगेगा।
अगर कोई भारतीय सामान 100 रुपये का है, तो अमेरिका में उसकी कीमत 150 रुपये हो जाएगी। इससे भारतीय निर्यातकों को भारी नुकसान होगा। खासतौर पर उन छोटे और मध्यम उद्यमों को, जो अमेरिका पर बहुत निर्भर हैं। हालाँकि, इस खबर के बावजूद Indian Stock Market अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। Sensex 81,849 के स्तर पर चल रहा है। बाजार का यह प्रदर्शन दिखाता है कि भारतीय निवेशकों का आत्मविश्वास डगमगाया नहीं है।
भारत के राष्ट्रीय हितों पर हमला
India ने Russia से तेल खरीदने का फैसला अपनी जनता के हित में लिया था। रूस से तेल खरीदने से भारत को सस्ता तेल मिल रहा था। इससे भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें नियंत्रण में रहीं। साथ ही, भारत का foreign exchange reserves भी बचा। लेकिन अमेरिका को यह बात पसंद नहीं आई।
अमेरिका का यह कदम भारत की संप्रभुता पर हमला माना जा रहा है। भारत एक स्वतंत्र देश है। उसे यह अधिकार है कि वह अपने हित में फैसला ले। वह जिस देश से चाहे, व्यापार कर सकता है। अमेरिका का भारत को यह बताना कि वह किससे व्यापार करे और किससे न करे, गलत है।

जयशंकर की रूस यात्रा का महत्व
यह घटना उस समय हुई है जब भारत के विदेश मंत्री रूस की यात्रा पर हैं। श्री जयशंकर की यात्रा को बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। माना जा रहा है कि इस यात्रा में Russia–Ukraine War और आर्थिक सहयोग जैसे मुद्दों पर चर्चा होगी।
रूस ने भारत का समर्थन करते हुए कहा है कि भारतीय चिंतित न हों। अगर अमेरिका का बाजार बंद होता है तो रूस अपना बाजार भारत के लिए खोल देगा। रूस ने भारत को तेल की कीमतों में 5% की अतिरिक्त छूट देने का भी ऑफर दिया है। इससे भारत को और सस्ता तेल मिल सकेगा।

बीस लाख बैरल प्रतिदिन का रिकॉर्ड
भारत ने रूस से तेल खरीद में नया इतिहास रच दिया है।
- अब प्रतिदिन 20 लाख बैरल कच्चा तेल भारत के बंदरगाहों पर उतर रहा है।
- यह संख्या अब तक की सबसे बड़ी है।
- इससे साफ है कि भारत ने अमेरिका की धमकियों को दरकिनार कर दिया है।
- रूस के “काले सोने” से भारत के समुद्र सचमुच लबालब हो गए हैं।
इतिहास खुद को दोहरा रहा है?
भारत पर अमेरिकी प्रतिबंधों का यह पहला मामला नहीं है। भारत ने जब भी अपनी संप्रभुता के लिए कोई बड़ा कदम उठाया है, अमेरिका ने उस पर दबाव बनाने की कोशिश की है।
- 1974 में पोखरण-I (Smiling Buddha): जब indira gandhi prime minister थीं, भारत ने अपना पहला Nuclear Test किया था। इसके तुरंत बाद अमेरिका ने भारत पर प्रतिबंध लगा दिए थे। अमेरिकी जनता भी सड़कों पर उतर आई थी।
- 1998 में पोखरण-II: भारत ने Atal Bihari Vajpayee के नेतृत्व में पोखरण में दूसरा परमाणु परीक्षण किया। यह अमेरिका के लिए एक बड़ा झटका था, क्योंकि वह इसकी खुफिया जानकारी नहीं जुटा पाया था। अमेरिका ने तुरंत भारत पर कई प्रतिबंध लगाए। उसने भारत को मिलने वाली विदेशी मदद, सैन्य वित्तपोषण और बैंक लोन पर रोक लगा दी।
- लेकिन, अमेरिका को आखिरकार झुकना पड़ा। 2001 से 2008 के बीच उसने धीरे-धीरे भारत पर से प्रतिबंध हटाए। उसने भारत के साथ ‘123 समझौता’ जैसे अहम समझौते किए, जो किसी और देश के साथ नहीं किए थे। इससे यह साबित होता है कि अमेरिका भारत को नजरअंदाज नहीं कर सकता।
China vs India: अमेरिका की दोहरी नीति
White House से जब यह सवाल पूछा गया कि चीन भी तो रूस से तेल खरीद रहा है, उस पर प्रतिबंध क्यों नहीं? तब उनका जवाब चौंकाने वाला था। उन्होंने कहा कि चीन पहले से ही 13% तेल रूस से खरीद रहा था, जबकि भारत ने 1% से बढ़ाकर इसे 42% कर दिया है। White House के press secretary ने यह भी कहा कि चीन के तेल खरीदने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों पर असर नहीं पड़ता।
यह बात हास्यास्पद है, क्योंकि भारत दुनिया को यही समझाने की कोशिश कर रहा था कि हम रूस से तेल इसलिए खरीदते हैं ताकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों पर दबाव न पड़े। America की यह दोहरी नीति चीन के प्रति उसकी कमजोरी को दर्शाती है। China ने Rare Earth Elements के निर्यात पर रोक लगाकर अमेरिका पर दबाव बना रखा है। अमेरिका चीन को नाराज नहीं कर सकता, इसलिए उसने भारत जैसे मित्र देश को निशाना बनाया है।

भारत की प्रतिक्रिया और आगे का रास्ता
- भारत सरकार ने इस प्रतिबंध पर कोई औपचारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन Foreign Minister S. Jaishankar की रूस यात्रा इस बात का संकेत है कि भारत अमेरिका के दबाव में नहीं आएगा।
- Russian Foreign Ministry ने भारत के लिए अपने बाजार खोल दिए हैं और रूस भारतीयों से कहा है कि वे परेशान न हों। उन्होंने भारतीय सामान के निर्यात के लिए अपने बाजार खोले हैं और भारत को 5% और कम कीमत पर तेल देने का प्रस्ताव दिया है।
- यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है। हमें America पर अपनी निर्भरता कम करनी होगी। भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना होगा ताकि वह किसी भी देश के दबाव में न आए।